एब्स्ट्रैक्ट:बिहार में आरा ज़िला के लोग बड़ी शान से कहते हैं- 'आरा ज़िला घर बा त कवन बात के डर बा.' मतलब आरा ज़िल
बिहार में आरा ज़िला के लोग बड़ी शान से कहते हैं- 'आरा ज़िला घर बा त कवन बात के डर बा.' मतलब आरा ज़िला है तो किसी बात का डर नहीं है. इस शहर को पहली नज़र में देखिए तो लगता है कि यहां के लोगों को गंदगी से भी डर नहीं लगता है.
पूरा शहर ऐसा लगता है मानो कचरे के ढेर पर बसा हो. सड़कों पर बहती नालियां और तेज़ बदबू. ऊपर से ट्रैफ़िक ऐसा कि एक बार फंसे तो उसी गंदगी में छटपटाते रहिए. यहां धूल हमले की शक्ल में साम्राज्य जमाए बैठी है.
ग़लती से भी अपनी नाक में उंगली डाली तो उंगली भीतर घुसी मिट्टी के साथ काली निकलेगी. ग़लती से खांसी आ गई और मुंह खुल गया तो कुछ मच्छर भी आराम से अंदर चले जाएंगे.
तभी पीछे से कोई ऑटो या बाइक वाला ट्रक का मोटा हॉर्न मारेगा जबकि उसे पता है कि आगे जाने के लिए हवा को भी इंतज़ार करना पड़ रहा है.
आप बाइक से हैं और ज़मीन पर एक पैर रख दिया तो जूते या चप्पल में गंदे पॉलिथीन फंसना तय है. अचानक से ट्रैफिक थोड़ा खुलता है तो लोग ऐसे भागते हैं मानो पीछे से कोई दौड़ा रहा हो. इतना कुछ झेलने के बाद वहां के सांसद के पास पहुंचिए तो मन में ग़ुस्से से भरे कई सवाल होते हैं. पहला सवाल तो यही होता है कि आपने किया क्या है?
यहां के सांसद आरके सिंह हैं. आरके सिंह मोदी सरकार में ऊर्जा मंत्री हैं. इससे पहले वो गृह सचिव थे. 20 अप्रैल को आरके सिंह आरा सदर प्रखंड के गंगहर गाँव में चुनावी प्रचार के लिए पहुंचे थे.
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सिर्फ दो सवाल
वहां कई सवालों के साथ पहुंचा था. गांव के लगभग बाहर बने एक दालान में आरके सिंह, उनके सुरक्षाकर्मियों और समर्थकों को गांव वाले खाना खिला रहे थे. खाना खाने के बाद सिंह से सवाल पूछना चाहा तो उन्होंने कहा कि सिर्फ़ दो सवाल.
जितनी मशक्कत से उन तक पहुंचा था उसमें उनके दो सवाल की सीमा रेखा अजीब थी. पहला सवाल यही पूछा कि शहर में बेशुमार गंदगी है. ज़ाहिर है यह पिछले पांच सालों की ही गंदगी नहीं है.
आरके सिंह ने स्वीकार किया कि हां, गंदगी है. उन्होंने कहा, ''यहां ड्रेनेज की समस्या विकराल है. सड़कें चौड़ी करने की ज़रूरत है. हम इस काम में लगे हुए हैं. बाइपास के लिए फ्लाइओवर का काम चल रहा है. इसके बनने के बाद शहर सांस ले पाएगा.''
आरके सिंह के इस जवाब से वहां खड़े ग्रामीण सहमति जताते दिखे. इतना जवाब देकर वो निकलने लगे. दूसरा सवाल पूछा कि इस बार लड़ाई कितनी मुश्किल है तो उनका जवाब था कि लोगों से पूछिए.
आरके सिंह जिस गांव में थे वो राजपूत बहुल गांव है. आरके सिंह ख़ुद भी राजपूत जाति से ही हैं. इनकी शादी आरा में ही हुई है और सिंह की बेटी की ससुराल भी यहीं है.
जब आरके सिंह गंगहर गांव में खाना खा रहे थे तो बाहर कई लोग खड़े थे. गांव के मुखिया से काम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ''आरके सिंह ने काम ख़ूब कराया है. हमलोग के गाँव में सड़क नहीं थी, देखिए अब कितनी अच्छी है. बिजली को पोल थे लेकिन बिजली नहीं थी, अब बिजली आ गई. उन्होंने किसी से भेदभाव नहीं किया.'
चुनाव इतना आसान नहीं
इन बातों के दौरान मोहम्मद ज़ाकिर हुसैन नाम के एक व्यक्ति की तरफ़ इशारा करते हुए मुखिया ने कहा, ''देखिए न! ई तो मुसलमान है. नाम के ही मुसलान हैं. शंकर जी के मंदिर में भी पूजा करने लगता है. मतलब लगता ही नहीं है कि मुसलमान हैं. इससे भी पूछिए तो बताएगा कि आरके सिंह ने कितना काम किया है.''
ज़ाकिर हुसैन गंगहर के बगल के गांव के हैं. उनसे पूछा कि काम हुआ है? ज़ाकिर हुसैन का जवाब था, ''कुछ नहीं हुआ है सर. मेरे गाँव में कुछ भी नहीं हुआ है.''
ज़ाकिर हुसैन का यह कहना कि गांव वालों ने उन्हें घेर लिया. वहीं खड़े एक व्यक्ति ने कहा, ''का रे ज़किरवा झूठ बोलता है रे.'' ज़ाकिर हुसैन ने भी डटकर कहा, '' एकरा में का झूठ बा. कहां कुछ काम भइल बा.'' तभी आरके सिंह खाने के बाद हाथ धोने बाहर आ गए और बातचीत वहीं ख़त्म हो गई. ज़ाकिर हुसैन फिर दिखे नहीं.
गंगहर गांव के राजपूत आरके सिंह से संतुष्ट दिखे. सब एक मुंह से कह रहे थे कि आरके सिंह को ही वोट करेंगे. गांव के लोग पाकिस्तान के बालाकोट में एयरस्ट्राइक की बात करते दिखे. यहीं के मदन सिंह कहते हैं कि जो देश का मान बढ़ाएगा वोट उसे ही मिलेगा.
इतना कुछ होने के बावजूद गांव वाले इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस बार 2014 की तरह चुनाव आसान नहीं है. गांव वाले जातीय समीकरण का गणित भी समझाने लगते हैं. मदन सिंह कहते हैं, ''आरके सिंह को ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, बनिया, कोयरी और कुर्मी का वोट मिलेगा. लेकिन यादव, दलित, मुसलमान तो राजू यादव को ही करेगा.''
इमेज कॉपीरइटPRASHANT KUMAR/BBCImage caption भाकपा माले के उम्मीदवार राजू यादव, जिनके लिए राजद ने आरा की सीट छोड़ दी है. 'हिंदू आतंकवाद' पर इनकार
आरके सिंह से किसी तरह तीसरा सवाल पूछा कि क्या 'हिन्दू आतंकवाद' टर्म का इस्तेमाल पहली बार उन्होंने ही किया था? कुछ देर सोचने के बाद जवाब में सिंह ने कहा, ''नहीं, मैंने नहीं कहा था. बल्कि जिसने कहा था उसका प्रतिकार भी किया था.'' इतना कहकर उन्होंने अपनी गाड़ी का दरवाज़ा झट से बंद कर लिया और निकल गए.
गांव वालों ने इस सवाल पर कहा कि आख़िर में नेताजी को फंसा ही दिए. एक ग्रामीण ने कहा, ''बीबीसी देखकर हवा टाइट हो गई होगी. ये लोग मनभावन सवाल नहीं पूछते हैं न जी. आरके सिंह को जवाब देना चाहिए था तो वो भाग गए. अरे आप सही हैं तो सवालों से क्या डरना. यही इनलोग की आदत ठीक नहीं लगती है. जाइए न पीछे-पीछे. छोड़िए मत और पूछिए.''
आरके सिंह का काफ़िला धूल उड़ाते बहुत आगे निकल चुका था. 10 से 15 की संख्या में गांव वाले खड़े थे. उनसे पूछा कि नेताजी अब तो चले गए क्या कुछ बताएंगे.
एक व्यक्ति ने कहा, ''देखिए सर, ऐसा नहीं है कि आरके सिंह ने कायापलट कर दिया है. इतना तो है कि पहले के सांसद कुछ नहीं करते थे पर इन्होंने कुछ किया है, जो दिखता है. इनको जीतना चाहिए लेकिन जतिया सर (जाति), कैंसर की तरह फैला हुआ है और वोटवा में इसका असर होता है. देखिए क्या होता है.''
गंगहर गांव से निकलने के कुछ देर बाद एक दुकान पर पानी पीने रुका. दुकान सत्यदेव सिंह की थी. उनसे पूछा कि चुनावी माहौल क्या है? वो बोले, ''आरके निकल जाएंगे. काम किया है. सब जाति से वोट मिलेगा.'' मैंने पूछा आप क्या हैं, ''बाबुए साहेब (राजपूत) हैं. लेकिन सर, वोट सब देगा. देखिए न ई तो जादव हैं. पूछिए, ई भी आरके को ही देंगे.''
साझे उम्मीदवार से कड़ी चुनौती
सत्यदेव सिंह के बगल में कमलेश यादव बैठे थे. मैंने पूछा, क्या कमलेश जी आपलोग भी आरके सिंह के ही साथ हैं?
कमलेश यादव का जवाब था, ''अभी हमलोग का गांव डिसाइड नहीं किया है. ये कैसे कह सकते हैं कि आरके के साथ हैं. देखिए अभी तो टाइम है. राजू यादव भी मज़बूत उम्मीदवार है.'' कमलेश यादव की बात सुन सत्यदेव सिंह चुप ही हो गए.
आरा में 19 मई को मतदान है और इस बार राजू यादव विपक्ष के साझे उम्मीदवार हैं. राजू सीपीआईएम (एल) से हैं. आरा में सवर्णों में राजपूत जाति बहुसंख्यक है पर यादवों की संख्या भी कम नहीं है.
आरा वो इलाक़ा है जहां नक्सल आंदोलन बहुत ही प्रभावी रहा है. इस वजह से सीपीआईएमएल की भी यहां मज़बूत ज़मीन रही है. ऐसे में इस बार आरके सिंह के लिए लड़ाई आसान नहीं है और राजू यादव विपक्ष के साझे प्रत्याशी होने के कारण एक मज़बूत उम्मीदवार के तौर पर देखे जा रहे हैं.
आरके सिंह के पक्ष में उनकी छवि जाती है. आरा में उनकी छवि अच्छी है और ज़्यादातर लोग उस तरह से ग़ुस्से में शिकायत नहीं करते हैं.